सराय नागा मामले की न्यायिक जांच कर सच्चाई सामने लानी चाहिए : प्रो. सरचंद सिंह ख्याल

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इस मामले की न्यायिक जांच करने के लिए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय, केंद्रीय गृह मंत्री, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और पंजाब सरकार से की गई अपील ।
अमृतसर, 25 जुलाई ( ) भारतीय जनता पार्टी के सिख नेता प्रो. सरचंद सिंह ख्याला ने 44 साल पहले अप्रैल 1979 में फरीदकोट में जिला पुलिस प्रमुख के पद पर तैनाती के दौरान सिमरनजीत सिंह मान की  गांव सराय नागा में विवादित पुलिस मुठभेड़ के संबंध में रिकॉर्ड के मुताबिक पूरा सच लोगों के सामने रखने की मुख्यमंत्री भगवंत मान से गुजारिश की गई है.
मामले की गंभीरता और संवेदनशीलता को देखते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट से उक्त मामले पर नोटिस लेने की अपील करने के अलावा केन्द्रीय गृह मंत्री, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, नई दिल्ली और पंजाब सरकार से भी अनुरोध की है कि मामले की उच्च स्तरीय निष्पक्ष न्यायिक जांच कराई जाएं।
उन्होंने कहा कि श्री गुरु अंगद देव जी की जन्मस्थली ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिब, पर गोलियां चलाने और चार निहंग सिंहों को फर्जी मुठभेड़ में मारने के लिए पूर्व आईएएस समेत वरिष्ठ पत्रकार एव विभिन्न जिम्मेदार व्यक्ति एमपी मान पर इलज़ाम लगाने को सत्य के रूप में स्वीकार किया जाता है, तो यह धार्मिक रूप से संवेदनशील, लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों का उल्लंघन के साथ-साथ एक गंभीर आपराधिक मामला है, जिसमें लोगों को सच्चाई जानने का पूरा अधिकार है।
प्रो. ख्याला ने कहा कि निश्चित रूप से उक्त घटना पुलिस प्रशासन की मौके पर समझदारी से स्थिति को संभालने में विफलता का परिणाम थी। यदि यह सच है कि  सरदार मान द्वारा हिरासत में लिए गए नागरिकों को बेरहमी से मारा गया था तो यह संविधान द्वारा अपने लोगों की कानून के अनुसार रक्षा करने की शपथ की भावना के भी विपरीत है। और अपराध की श्रेणी में आता है। चूंकि यह घटना श्री प्रकाश सिंह बादल के मुख्यमंत्री के रूप में दूसरे कार्यकाल के दौरान हुई थी,  घटना के संबंध में श्री बादल की भूमिका की भी जांच की जानी चाहिए। यदि उक्त घटना वास्तव में एक फर्जी मुठभेड़ थी, तो गुरुद्वारा साहिब पे गोलीबारी करने और हिरासत में लिए गए अपने ही नागरिकों की कीगई हत्या की तुलना जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर द्वारा 1919 में जलियांवाले बाग में निर्दोष लोगों के नरसंहार से की जा सकती है।
उक्त मामले को लेकर सामने आए विभिन्न बिंदुओं पर चर्चा करते हुए प्रो. सरचंद सिंह खियाला ने कहा कि मीडिया में छपी खबरों के अलावा वरिष्ठ पत्रकार बीके चम ने अपनी किताब ‘बिहाइंड क्लोज्ड डोर’ में  निहंग सिंगों की हत्या के लिए श्री मान को जिम्मेदार बताते होये दावा किया गया था कि उक्त फर्जी पुलिस मुठभेड़ को माान दुआरा अंजाम दिया गया था। पंजाब के पूर्व आईएएस गुरतेज सिंह ने भी अपने लेखन के जरिए श्री सिमरनजीत सिंह मान पर इस तरह का आरोप लगाया था। जिसका जवाब आज तक माननीय मान नहीं दिया और न ही उन पर मानहानि का मुकदमा किया गया है। जबकि श्री गुरतेज सिंह ने तत्कालीन जिलाधिकारी गुरबख्श सिंह गोसल के संदर्भ में लेखन और निजी टीवी चैनलों के माध्यम से कई बार श्री मान के खिलाफ फर्जी मुठभेड़ और आरोपों को दोहराया है। उनके अनुसार, जिन निहंग सिंहों ने उस दिन हजारों लोगों और रिश्तेदारों की उपस्थिति में आत्मसमर्पण किया था, उन्हें रस्सियों से बांधने के अलावा, उन्हें भी आंखों पर पट्टी बांधकर गुरुद्वारा साहिब के पीछे ले जाया गया, जहां इस इस पी मान ने खुद उन्हें गोली मार दी थी। अपनी सर्विस रिवॉल्वर से और फायरिंग कर दी जिसमें कम से कम दो निहंग मारे गए। वहीं जिलाधिकारी श्री गोसल ने श्री मान की कलाई पकड़कर उन्हें रोक लिया. अन्य दो को वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने मार गिराया। एक जिम्मेदार पूर्व आईएएस अधिकारी श्री गुरतेज सिंह के इस दावे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि इस घटना के एक साल बाद जब वह पंजाब सचिवालय में श्री मान से मिले, तो श्री मान ने धार्मिक स्थल पर गोली चलाने और पकड़े गए 4 निहंग सिंह की हत्या के बारे में एक सवाल के जवाब में कहना केे मैंं फौज का सेनापति था। मेरे सामने मेरे जवान शहीद हो गए, मेरा खून खौल गया,” । पूर्व आईएएस के अनुसार, एक साल बाद भी श्री मान को उस घटना का कोई पछतावा नहीं था। जानकारी के अनुसार उस दिन ग्राम खारा से चार, ग्राम सकवनाली व ममदोत से चार, कुल आठ निहंग सिंह बैसाखी मनाने दमदमा साहिब जा रहे थे.एक कुत्ते – बंदर के मामूली लड़ई को लेकर विवाद हो गया और बात पुलिस तक पहुंच गई. । पुलिस के पहुंचने पर निहंग सिंह खेतों में छिप गए, जहां उन पर गोलियां चलाई गईं, निहंग सिंगों ने जवाबी कार्रवाई की, जिसमें तीन पुलिसकर्मियों की मौत हो गई।  इस तरह के हंगामे की कोई जरूरत नहीं थी, क्योंकि निहंग सिंह की पहचान पहले ही हो चुकी थी और उन्हें कभी भी गिरफ्तार किया जा सकता था  । पुलिस ने पहले निहंग सिंगों को आत्मसमर्पण के लिए औरतों को ढाल बनाया , फिर ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिब को उड़ाने की धमकी दी।आखिरकार बंदर जटाना के पंडित मेघनाथ और वारिंग गांव के बलदेव सिंह दुआरा पोलिस की तरफ से निहंगों के खिलाफ केेवल कानूनी कार्रवाई का वादा देकर उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया गया था। माना जाता है कि हजारों लोगों ने इस दृश्य को देखा है। । इस घटना के संबंध में श्री मान के इस कथन का कोई अर्थ नहीं है कि निहंग सिंह नशे में था और उसने ऐतिहासिक गुरुद्वारे पर कब्जा कर लिया था। क्या गुरु की सेना के निहंग सिंह को नशेड़ी कहना और गुरुद्वारा साहिब पर सैकड़ों गोलियां चलाना अपमानजनक ( बेअदबी) नहीं?  उन्होंने न्यायिक जांच कराकर आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।