रोजी ने महक की बदल दी जिंदगी (रोजी बकरी का नाम है, और महक रोजी को पालने वाली लड़की है)

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महक गरीब घर की लड़की थी। पांच साल की थी तो घऱ में छोटी सी बकरी उसके पापा लेकर आये। सारा दिन महक बकरी के साथ घूमती रहती। बकरी का नाम उसने रोजी रखा। रोजी के बगैर महक एक पल भी नहीं रूकती थी। गांव के बच्चे उसे चिढ़ाते आ गई बकरी की सहेली। लेकिन महक किसी की परवाह नहीं करती। महक की मां लोगों के घऱों में काम करती तो बाप दूसरे के खेतों में मजदूरी। महक पढ़ने में बहुत तेज थी। पांचवी कक्षा के बाद स्कूल गांव से दूर शहर में था। महक के पिता ने कहा कि बेटा पांचवीं क्लास पढ़ ली है, तुम्हें कौन सा जज बनना है। रहने तो पढ़ाई। लेकिन महक पढ़ना चाहती थी। वो उस दिन रोजी को लेकर गांव के बाहर सड़क पर आकर बैठ गई। बहुत रो रही थी। रोजी इतना घुलमुल गई थी कि महक का दुख समझ लेती थी। रोजी ने महक को हंसाने के लिए उसके सिर पर चढ़ती कभी हाथों को चूमती लेकिन महक पढ़ाई को लेकर चिंतित थी। इसी दौरान रोजी भी थक हार कर बैठ गई। थोड़ी देर बाद वो बगल में ही घास चरने लगी। तभी रोजी के मुंह पर एक प्लास्टिक का लिफाफा चिपक सा गया।

महक ने देखा तो रोजी के मुंह से लिफाफा पकड़ा वैसे ही खोला तो देखा उसमे दस-बारह लाटरी के टिकट थे। महक पांचवीं तक ही पढ़ी थी लेकिन उसे अंग्रेजी अच्छी आती थी। उसने देखा कि लाटरी के टिकट का ड्रा कल का ही थी। महक ने सारी लाटरी की टिकट ले ली और घर आ गई। रोजी को रोटी खिलाई और खुद खाली पेट सो गई। सुबह गांव के सरपंच के घर अखबार में लाटरी की टिकट का रिजल्ट देखने गई तो सारे नंबर मिला दिये लेकिन कोई नंबर नहीं लगा था। महक की यह भी आस टूट चुकी थी। उसके आंखों से आंसू निकल रहे थे। तभी सरपंच की नजर महक पर पड़ी तो सरपंच ने कहा बेटी क्या ढूंढ रही हो अखबार में। यह सुनते महक ने लाटरी सड़क पर मिलने से लेकर नंबर मिलाने तक सारी बात बता दी। कौतहूल वश सरपंच ने कहा ला बेटा दिखा लाटरी मैं देखता हूं। सरपंच ने लाटरी के नंबरों से जब मिलान करने लगे। एक-एक करके सारी टिकट देख रहे थे। एक ही बची थी। आखिरी टिकट का नंबर मिलाते ही सरपंच के आंखे जैसे फट गई हो। लाटरी के एक नहीं बल्कि सारे नंबर मिल गए थे। एक करोड़ का लाटरी महक ने जीत ली थी। वैसे तो लाटरी किसी और ने खऱीदी थी, लेकिन यह लाटरी आन कैश पेमेंट वाली थी, यानि की जिसके हाथ लाटरी का टिकट उसकी लाटरी। सरपंच ने महक को प्यार करते हुए कहा बेटा तो तू करोड़पति हो गई। दरअसल महक ने पहले जो लाटरी मिलाई थी वो राजश्री लाटरी के नाम से मिला रही थी, लेकिन एक टिकट राजलक्ष्मी लाटरी का था। जिसे गलती से महक ने राजश्री वाली सीरीज से मिलाकर देख लिया था।
सरपंच ने कहा तो महक को लगा कि अब तो पांच सौ रुपये का स्कूल की फीस देने व एक हजार रुपये की किताबें-कापी का पैसा मिल ही जायेगा। महक ने सरपंच से पूछा ताऊ कितना पैसा मिलेगा। सरपंच ने बस इतना कहा कि इतना पैसा कि तुम गिन नहीं पाऔगी। यह बात जंगल की आग की तरह शहर तक पहुंची। टीवी चैनल व अखबारों में जब लाटरी मिलने की कहानी सुनी तो रोजी भी लाइम लाइट में आ गई। महक ने बताया कि लाटरी मुझे नहीं रोजी को मिली थी। किस्मत बदलने की यह कहानी इतनी बेहतरीन थी कि जिसने पढ़ा या टीवी में देखा वो बस रोजी व महक की बात कर रहा था।
—————-बीस साल बाद————–
महक हावर्ट यूनिवर्सिटी की ट़ॉपर बनने के बाद वापस वतन लौटी। अमेरिका में उसे सबसे कम उम्र में साइंस में योगदान देने के लिए सम्मान के साथ-साथ पचास लाख डालर का पुरस्कार दिया। भारत सरकार ने महक को दिल्ली यूनिवर्सिटी में साइंस डिपाटर्मेंट का हेड आफ डिपार्टेमेंट बनाया। आज महक ने दिल्ली में एक बड़ा पशु अस्पताल बनाया है जो कि दुनिया का पहला एयरकंडीशन हास्पिटल है जहां पशुऔ का इलाज फ्री होता है। उसका नाम महक ने रखा है रोजी हास्पिटल। ………………सभी फेसबुक दोस्तों को समर्पित…………..सफर